आगरा के प्रतापपुरा स्थित प्रधान डाकघर में मौजूद आगरा फिलेटलिक म्यूजियम के डाक संग्रह को अगर नहीं देखा तो क्या देखा। डाकघर की हेरिटेज इमारत से आपने स्पीड पोस्ट और पत्र तो भेजे होंगे, लेकिन अबकी बार डाक टिकटों का अनूठा संसार जरूर देखिए।
यहां आगरा के स्मारकों, कवियों, कलाओं के साथ इस डाकघर के 100 साल पूरे होने पर जारी किए गए डाक टिकट को भी प्रदर्शित किया गया है। यहां हर दिन स्कूली बच्चों का ग्रुप डाक टिकटों की अलग ही दुनिया को जानने-समझने आता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौर में 1885 में भेजे गए पोस्ट कार्ड को यहां चित्र के रूप में प्रदर्शित किया गया है। एक ही परिवार की पांच पीढ़ियों ने इन पोस्ट कार्ड को सहेजा हुआ है।
फिलेटलिक म्यूजियम में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ ब्रिटिश भारत के 100 साल पुराने पोस्ट कार्ड भी दिखाए गए हैं। इनमें जो मुहर लगी है, वह अप्रैल 1904, सितंबर 1916, अप्रैल 1912 की हैं। आने और पैसों के पोस्ट कार्ड भी यहां दर्शाए गए हैं। स्कूली बच्चों की सबसे ज्यादा उत्सुकता इन्हीं पोस्ट कार्ड में है। इस म्यूजियम को डिजाइन करने वाले डाक विभाग के प्रणय छिब्बर डाक टिकटों के संग्रहकर्ता भी हैं। उन्होंने म्यूजियम में ताजमहल को प्रमुखता दी है।
प्रणय के पास खेल, परिवहन, स्पेशल कवर, वन्य जीव पर बड़ा संग्रह है। उनके मुताबिक डाक विभाग ने ताज से पहले सिकंदरा स्मारक पर 1948 में ही डाक टिकट जारी कर दिया था। स्टांप पर ताजमहल तो 1968 में नजर आया। आगरा का ताज, किला, फतेहपुर सीकरी, जरदोजी, पच्चीकारी, बाबू गुलाब राय और महाकवि सूरदास डाक टिकट पर नजर आ चुके हैं। एत्माद्दौला पर विशेष कवर कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 2010 में जारी किया गया था।
महात्मा गांधी पर 100 रुपये कीमत का खादी से निर्मित टिकट देश का सबसे अधिक मूल्य का डाक टिकट है। म्यूजियम में इसे खास जगह दी गई है। टिकट पर पैसे और रुपये का अंतर इस टिकट को देखकर ही बच्चे पहचान पाते हैं। इसके अलावा गीत गोविंद पर जारी सीरीज और भारतीय सिनेमा के 100 साल के सितारों पर जारी टिकट यहां प्रदर्शित किए गए हैं। खुशबूदार फूलों पर जारी टिकट बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। इसके अलावा अंग्रेजी दौर की करेंसी चेस्ट और लैटर बाक्स भी यहां प्रदर्शित किया गया है।
source amarujala.com
यहां आगरा के स्मारकों, कवियों, कलाओं के साथ इस डाकघर के 100 साल पूरे होने पर जारी किए गए डाक टिकट को भी प्रदर्शित किया गया है। यहां हर दिन स्कूली बच्चों का ग्रुप डाक टिकटों की अलग ही दुनिया को जानने-समझने आता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौर में 1885 में भेजे गए पोस्ट कार्ड को यहां चित्र के रूप में प्रदर्शित किया गया है। एक ही परिवार की पांच पीढ़ियों ने इन पोस्ट कार्ड को सहेजा हुआ है।
फिलेटलिक म्यूजियम में ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ ब्रिटिश भारत के 100 साल पुराने पोस्ट कार्ड भी दिखाए गए हैं। इनमें जो मुहर लगी है, वह अप्रैल 1904, सितंबर 1916, अप्रैल 1912 की हैं। आने और पैसों के पोस्ट कार्ड भी यहां दर्शाए गए हैं। स्कूली बच्चों की सबसे ज्यादा उत्सुकता इन्हीं पोस्ट कार्ड में है। इस म्यूजियम को डिजाइन करने वाले डाक विभाग के प्रणय छिब्बर डाक टिकटों के संग्रहकर्ता भी हैं। उन्होंने म्यूजियम में ताजमहल को प्रमुखता दी है।
प्रणय के पास खेल, परिवहन, स्पेशल कवर, वन्य जीव पर बड़ा संग्रह है। उनके मुताबिक डाक विभाग ने ताज से पहले सिकंदरा स्मारक पर 1948 में ही डाक टिकट जारी कर दिया था। स्टांप पर ताजमहल तो 1968 में नजर आया। आगरा का ताज, किला, फतेहपुर सीकरी, जरदोजी, पच्चीकारी, बाबू गुलाब राय और महाकवि सूरदास डाक टिकट पर नजर आ चुके हैं। एत्माद्दौला पर विशेष कवर कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान 2010 में जारी किया गया था।
महात्मा गांधी पर 100 रुपये कीमत का खादी से निर्मित टिकट देश का सबसे अधिक मूल्य का डाक टिकट है। म्यूजियम में इसे खास जगह दी गई है। टिकट पर पैसे और रुपये का अंतर इस टिकट को देखकर ही बच्चे पहचान पाते हैं। इसके अलावा गीत गोविंद पर जारी सीरीज और भारतीय सिनेमा के 100 साल के सितारों पर जारी टिकट यहां प्रदर्शित किए गए हैं। खुशबूदार फूलों पर जारी टिकट बच्चों को बेहद पसंद आते हैं। इसके अलावा अंग्रेजी दौर की करेंसी चेस्ट और लैटर बाक्स भी यहां प्रदर्शित किया गया है।
source amarujala.com
तस्वीरें: पांच पीढ़ियों ने सहेजा डाक टिकटों का अनूठा संसार, इसे नहीं देखा तो क्या देखा
Reviewed by ADMIN
on
Monday, October 15, 2018
Rating:
No comments: