विश्व डाक दिवस पर भारतीय डाक का सफरनामा
हालांकि तब तक नौ अक्टूबर को डाक दिवस के रुप में नहीं मनाया जाता था. इसकी शुरुआत हुई इसके लगभग 90 साल बाद जब 1969 में जापान में इस दिन को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई. तब से यह परपंरा बन गई. भारत यूपीयू का सदस्य इसके गठन के दो साल बाद बना. ऐसा करने वाला यह पहला एशियाई देश था.आइए विश्व डाक दिवस के मौके पर भारत में इस सेवा से जुड़ी कुछ अहम जानकारियों पर नजर डालते हैं.
भारतीय डाक ने स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर हाई स्पीड इंटरनेट तक एक लंबा दौर देखा है. आज एक लाख 55 हजार से भी अधिक डाकघरों वाला हमारा डाक विभाग विश्व की सबसे बड़ी डाक प्रणाली है.
भारत में अंग्रेजी शासन के जन्मदाता माने जाने वाले लार्ड क्लाइव ने 1766 में भारत में डाक व्यवस्था की शुरुआत की. इसके बाद 1774 में बंगाल के गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में एक प्रधान डाकघर बनाया. लेकिन भारत में डाक विभाग की स्थापना सही मायने में एक अक्टूबर 1854 को मानी जाती है जब तत्कालीन भारतीय वॉयसराय लार्ड डलहौजी ने इस सेवा का केंद्रीकरण कर दिया. उस समय ब्रिटिश हुकूमत या फिर ईस्ट इंडिया कंपनी की जद में आने वाले 701 डाकघरों को मिलाकर भारतीय डाक विभाग की स्थापना की गई. इसलिए इस साल को भारतीय डाक के स्थापना वर्ष के रूप में देखा जाता है. अंग्रेजों ने डाक का विकास अपने सामरिक और व्यापारिक हितों के लिए किया था, लेकिन आजादी के बाद डाक आम भारतीय के सुख-दुख की साथी बन गई.
वापस पीछे चलते हैं. 1854 में ही भारत में रेल डाक सेवा शुरू की गई. भारत में डाक और तार (टेलीग्राम) की शुरुआत दो अलग विभागों के तौर पर हुई थी. इनका विकास भी समानांतर रुप से ही हुआ. फिर 1914 में विश्व युद्ध के दौरान इन दोनों विभागों का विलय कर दिया गया. टेलीफोन और मोबाइल के उदय ने तार सेवा की जरूरत खत्म कर दी. नतीजतन डेढ़ सदी से भी ज्यादा के सफर के बाद इस सेवा को 14 जुलाई 2016 में खत्म कर दिया गया.
1880 में देश में मनीआर्डर सेवा की शुरूआत की गई थी. इस सुविधा के शुरू होने के बाद लोगों ने छोटी-छोटी रकमों को सुगमता और सुरक्षा के साथ अपने प्रियजनों या दूसरे लोगों के पास भेजना शुरू कर दिया. 1877 में वीपीपी और पार्सल सेवा शुरू हुई और 1879 में पोस्टकार्ड की शुरुआत हुई.
1972 में पिनकोड वजूद में आया. देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों को पिनकोड के हिसाब से बांटा गया जिससे कि डाक सेवाएं उपलब्ध कराने में आसानी हो. इसके बाद 1986 में डाक विभाग द्वारा स्पीड पोस्ट की सुविधा शुरू की गई. जरूरी डाक अब तेजी अपनी मंजिल पर पहुंचने लगी. इस सिलसिले में बाद में ई पोस्ट और ग्रीटिंग पोस्ट सेवा भी जुड़ी.
और 2018 में यह सिलसिला पेमेंट बैंक तक आ पहुंचा है. यानी अब डाकिया चिट्ठी-पत्री के साथ गांव और कस्बों के घर-घर तक बैंकिंग सेवाएं भी पहुंचाएगा. इनमें बचत और चालू खाते के साथ मनी ट्रांसफर, बिल पेमेंट और एटीएम जैसी सुविधाएं शामिल हैं.
1876 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बना भारत ऐसा करने वाला पहला एशियाई देश था
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Thursday, October 11, 2018
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