भारत का एक चंपारण बिहार के उत्तर -पश्चिम
में स्थित हैं धान की भारी उपज होने के वजह से अंग्रेजी शासन के दौरान कई बार इसे
चावल का कटोरा भी कहा जाता था। चंपारण के कई इलाकों में जल
जमाव की समस्या रहती थी। नील की खेती के लिए इस प्रकार का खुश्क वातावरण वरदान था प्रथम
विश्व युद्ध के वजह अंग्रेजी हुकूमत नें जर्मनी से नील का आयात बंद कर दिया था। इस
वजह से नील की माँग फिर बढ़ने लगी और चम्पारण नील की खेती के लिहाज से फिर से
प्रासांगिक होने लगा।नील किसानों ने 19वीं शताब्दी के बाद से गोरे बागान मालिको ने उन्हें नील की खेती
करने के लिए मजबूर किया गया था जो उन्हें बेहद खराब पारिश्रमिक प्रदान करता था तथा
अबवाब (Abwabs) नामक कई असामान्य और अवैध उपकरों के
लिए धन जुटाने के लिए मजबूर किया गया था।
राजकुमार शुक्ला एक नील किसान थे, वो 1916 में गांधीजी से लखनऊ कांग्रेस में
मिले और उन्होंने चंपारण आने का आग्रह किया, यह उनका दृढ़ प्रयास था जो गांधीजी को ग्रामीण बिहार में लेकर आया
था। गांधी जी 10 अप्रैल, 1917 को पहली बार पटना पहुंचे और पांच
दिन बाद, मुज़फ्फरपुर से चंपारण के जिला
मुख्यालय मोतिहारी पहुंचे। उन्होंने 17 अप्रैल को नील किसानों के लिए हितकारी चम्पारण सत्याग्रह की शुरुआत
की
यह उस संघर्ष का शताब्दी वर्ष है जिसके परिणामस्वरूप भारत में पहला
सफल नागरिक अवज्ञा आंदोलन हुआ।चंपारण सत्याग्रह 1917-18 के दौरान तीन आंदोलनों में से पहला था, जिसे गांधीजी और नागरिक असहमति को भारतीय राजनीति में प्रविष्टि के
रूप में चिह्नित किया था।
उस वक्त में अपने अंदर समेटे भारतीय डाक विभाग ने चंपारण शताब्दी वर्ष पर एक डाक टिकट जारी कर एक श्रदांजलि दी आम जनभावानो का सम्मान किया | चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर डाक टिकट जारी क्या जिस में एक 25 रुपये 10 रुपये 5 रुपये के जारी किया है
चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर डाक टिकट
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Thursday, October 19, 2017
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